कर्मचारी

 

यदि प्रदेश की भौगोलिक स्थिति की ओर देखा जाए तो किसी भी विभाग का कर्मचारी हो वह मैदानी क्षेत्र से लेकर दूरदराज बर्फानी क्षेत्रों में कम्प्यूटर के कारण स्टाफ की कमी होते हुए भी अपने कार्य को विभिन्न कठिन परिस्थितियों में भी अंजाम देता है। ऐसी परिस्थितियों में उसे उसकी सुविधाएं छीनने के स्थान पर उसकी कठिनाइयों को दूर करते हुए उसके छीने हुए हक लौटाने चाहिएं। पहले कर्मचारी छोटी अवस्था में ही नियुक्त किए जाते थे व नियमित आधार पर उनकी नियुक्तियां होती थीं, परंतु अब नियुक्तियां भी देरी से होती हैं, वे भी कांट्रैक्ट आधार पर यानी जब वह नियमित होगा तो उसका सेवाकाल बहुत कम रह जाएगा व उसके बाद उसे पेंशन नहीं बल्कि उसके लिए एक सीपीएफ की योजना चलाई गई है,  उसमें भी कई कर्मचारी भ्रमित किए जा रहे हैं। लेखक को एक सेवानिवृत्त अध्यापिका के बारे में पता चला कि उसे 2011 में रिटायरमेंट के बाद सीपीएफ की अभी तक राशि नहीं मिली। उसमें भी उसे मकड़जाल की तरह उलझाया जा रहा है। इसी प्रकार लीव एनकैशमेंट भी प्रभावित हो सकती है। कर्मचारियों को जितनी भी सुविधाएं मिलीं वे उन कर्मचारी नेताओं की धरोहर है, जिन्होंने कड़े संघर्ष के बाद खून-पसीना एक करके कर्मचारियों को इन बुलंदियों तक पहुंचाया, जिसमें एक कर्मचारी होना बड़े गर्व का विषय रहा है। 1970 की हड़ताल में कर्मचारियों ने केंद्र शासित प्रदेश होते हुए भी पंजाब वेतनमान लिया। आकस्मिक, अर्जित व मेडिकल अवकाश, चिकित्सा सुविधाएं उन कर्मचारी नेताओं का संघर्ष है। जैसे-जैसे समय बीतता गया कर्मचारी संगठनों का विघटन शुरू हो गया व माला के मोतियों की तरह बिखर गए व इतने संगठन हो गए कि गणना करना मुश्किल हो गया। जैसे विधायक अपने वेतन व भत्तों के लिए पार्टी मतभेदों को भूल कर एक हो जाते हैं, परंतु वर्तमान समय में कोई भी संगठन ऐसा नहीं है जो कर्मचारियों के खोए हुए अधिकारों को लौटा सके। कितने दुर्भाग्य का विषय है कि जो अपनी मान्यता के अस्तित्व की लड़ाई सार्वजनिक करते हुए हाथापाई करें व सरकार को मजबूर होकर ताला जड़ना पड़े, वे स्वयं यदि अतीत को झांककर देखें कि कैसे पूर्ववत कर्मचारी नेताओं  ने अधिकार दिलवाए। इस परिस्थिति में सरकार को चाहिए कि कर्मचारियों से सहानुभूति रखते हुए कम्प्यूटेशन वाला निर्णय लागू न करे, चिकित्सा भत्ता कम से कम 500 रुपए प्रदान करे। 

Posted by shant on 06:57. Filed under , , . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0. You can leave a response or trackback to this entry

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